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जिसकी तलाश थी

poem

बहुत ढूंढा उसे बाजारों में,
हर चेहरे में, हर दीवारों में।
मगर वो मिली, अनजानी राहों में,
जहां सन्नाटा था, पेड़ों की छांव में।

उसकी चाहत ही बाधा बनी,
जबसे सबकुछ छोड़ा मैंने,
तबसे वो मेरी बनी।

अब उसकी चाहत में भटकता नहीं,
ख़ुद को भूला, तो वो मिलीं।
वो सोच से भी सुंदर निकली,
पर राहें उसकी मुश्किल थीं।

जिसे ढूँढा था भीड़ के अंदर,
वो वीराने में हासिल थी।

अब वो मेरे पास है,
क्योंकि अब कोई तलाश नहीं।


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©  2025 Ganesh Kumar