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विचारों के समंदर

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विचारों के समंदर

अरे दोस्त!
क्यों है चिंतित
कुछ नहीं रखा अतीत में
कुछ पता नहीं भविष्य का
देख चारों ओर के मनोरम को
सुन चहकती हुई पंछियों को
मत समाओ विचारों के समंदर में
ढूंढ मंजुल प्रकृति में
उल्लास है केवल वर्तमान में
फिर क्यों करना समय व्यर्थ अतीत के दागों में।


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©  2025 Ganesh Kumar