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मैं तो ठहरा

poem

ना अभिमान किसी बात का,
ना भय किसी अपमान का।
दुख तो होता है उनको,
सुख की अपेक्षा करता है जो।
ना मैं दुखाता किसी का मन,
सबमें देखता हूं प्रभु का तन।
मैं तो ठहरा साधु संत,
मैं सुनता प्रभु का मंत।


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©  2025 Ganesh Kumar